सरहद के उस पार भी एक गाँव है
जहाँ कुछ तेरे जैसे,
जहाँ कुछ मेरे जैसे लोग बसे हैं!
सरहद के उस पार भी ऐसी ही मिट्टी है
सरहद के उस पार भी यही हवा, यही पानी है !
सरहद के उस पार भी कुछ परिवार हैं
वही सपने , वही ग़म, वही ख़ुशियाँ है !
सरहद के उस पार भी छोटे छोटे बच्चे हैं
जिनकी आँखों में बड़े बड़े सपने हैं!
सरहद के उस पर भी दिलों में कुछ अरमान है ।
सरहद के उस पार भी एक माँ एक बाप है ।
सरहद के उस पर एक गाँव में आग लगी है।
वो आग अभी भी बुझी नहीं है ।
कुछ परिवार बिखर गये हैं !
कुछ सपने टूट गए हैं !
कब से वो छोटा बच्चा सोया नहीं है!
एक माँ की आँखे सुनी हैं !
एक बीवी के आँसू थमे नहीं है!
सरहद के उस पार अब चन्द मकान है !
ना सपने है , ना दर्द हैं!
बस सन्नाटा ही सन्नाटा है!
क्या तुझे मिला , क्या मुझे मिला !
एक ज़मीन का टुकड़ा !
चन्द सिके जो ऊपर भी ना ले जा पायेगा!
सरहद के इस पार भी ऐसा ही गाँव है ।
Very nice its real……..
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दिल को छू गयी आपकी कविता…
न दर्द है न सपने है…
बस फैला हुआ एक सन्नाटा है …
जिसमे कितनो का शोर छुपा है, कितनो की चीखे और आंसू बोल रहे है
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